वेदो नित्यमधीयताम्, तदुदितं कर्म स्वनुष्ठीयतां, तेनेशस्य विधीयतामपचितिकाम्ये मतिस्त्यज्यताम्।
पापौघः परिधूयतां भवसुखे दोषोsनुसंधीयतां, आत्मेच्छा व्यवसीयतां निज गृहात्तूर्णं विनिर्गम्यताम्॥
भावार्थ: वेदों का नियमित अध्ययन करें, उनमें कहे गए कर्मों का पालन करें, उस परम प्रभु के नियमों का पालन करें, व्यर्थ के कर्मों में बुद्धि को न लगायें।
समग्र पापों को जला दें, इस संसार के सुखों में छिपे हुए दुखों को देखें, आत्म-ज्ञान के लिए प्रयत्नशील रहें, अपने घर की आसक्ति को शीघ्र त्याग दें।
हमारे बारे में
महर्षि भरद्वाज वेद वेदांग शिक्षण केन्द्र
भारत वैदिक संस्कृति को जीने वाला देश रहा है, तथापि चारो वेदों की ११३१ शाखाओ में से मात्र 9 शाखाएँ शेष बची है. वेदों के पारंपरिक मंत्रोच्चार के सरंक्षण का दायित्व एक महत्वपूर्णएवं अत्यावश्यक कार्य है.
श्रद्धेय श्री अशोक सिंघल जी ने इस विषय की गंभीरता को समझते हुए १९९८ में प्रयाग में एक निःशुल्क परंपरागत वेद विद्यालय प्रारंभ किया, जिसका संचालन वेद विद्या समिति करती है.

संस्था का उद्धेश्य
वेद विद्या का सरंक्षण, संवर्धन एवं विकास
बालकों को श्रुति परम्परा से वेद कण्ठस्थ कराना
वेदादि शास्त्रों पर विज्ञानपरक शोध करना
अन्य क्रिया-कलाप
September 30, 2018
महर्षि भरद्वाज वेद विद्या समिति द्वारा केसर भवन में वेद पूजन महोत्सव भव्यता के साथ मनाया गया। वि.हि.प. के पूर्व अध्यक्ष श्रद्धेय अशोक सिंघल जी का जन्मदिवस...
August 15, 2018
महर्षि भरद्वाज वेद विद्या समिति द्वारा प्रयाग में संचालित विद्यालय (महर्षि भरद्वाज वेद वेदांग शिक्षण केंद्र एवं महर्षि भरद्वाज वेद विद्यालय) तथा...
January 22, 2017
भारत के विभिन्न प्रांतों के 18 वेद विद्यालयों के 400 वैदिक बटुक और उनके आचार्यों का दिव्य संगम। वेद मंत्रों का सस्वर पारायण...